गरीब की थाली
वो जूठी रोटी हमारे थाल की,
शोभा बनती किसी कंगाल की,
है भूख इतनी हम सब की,
जब जी किया तब कुछ खाया,
कैसी मजबूरी ये उनकी देखो,
उनके थाल में कुछ न आया,
मजदुरी वो सुबह - शाम करे,
पर दिहाड़ी में हमने है सताया,
हस-हस कर हम खाने बैठे,
वो रो कर भी कुछ न पाया,
हम घूमें ट्रैन से,
हमारे बोझ को कुली बन उसने उठाया,
और उसके 10 रुपये ज्यादा की मांग पर,
हमने उसको डॉट भगाया,
कैसी मजबूरी ये उनकी देखो,
उनके थाल में कुछ न आया ।
:-निशु
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